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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी प्रथम प्रश्नपत्र - हिन्दी काव्य का इतिहास

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2677
आईएसबीएन :0

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हिन्दी काव्य का इतिहास

अध्याय - 13

प्रगतिवाद, प्रयोगवाद, नयी कविता एवं समकालीन कविता

 

प्रश्न- प्रगतिवाद के अर्थ एवं स्वरूप को स्पष्ट करते हुए प्रगतिवाद के राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक तथा साहित्यिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।

अथवा
प्रगतिवादी साहित्य काव्य की धारा नहीं, साहित्य का मार्क्सवादी दृष्टिकोण है, इस कथन में प्रगति को परिनिष्ठित करने की चेष्टा क्या वस्तुतः उसे संकीर्ण भी करती है? इस कथन की समीचीनता पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।

उत्तर -

प्रगतिवादी कविता छायावादोत्तर काल में विकसित, एक ऐसी काव्यधारा है जिसका सम्बन्ध युग जीवन से है। ऐतिहासिक दृष्टि से प्रगतिवाद का जन्म सन् 1935-36 के आस-पास के वर्षों में हुआ था। यह काव्यधारा आकस्मिक रूप से नहीं जन्मी है इसके मूल में कतिपय परिस्थितियाँ रही हैं और इसके उन्मेष के पीछे कुछ ऐसे कारण रहे हैं जिससे स्थिति स्पष्ट हो जाती है। डॉ. शिवकुमार मिश्र ने लिखा है कि, "प्रगतिवादी आधुनिक हिन्दी कविता की उस गौरवशाली परम्परा का एक क्रमिक विकास है जो भारतेन्दु से आरम्भ होकर निरन्तर अपने नये- नये रूपों में अभिव्यक्त करती रही है। प्रगतिवाद का आविर्भाव न तो किसी अनहोनी की सूचक है और न किसी ऐसी आकस्मिकता जो ऐतिहासिक संदर्भों से कटी हुई युग की संवेदनाओं से शून्य क्लान्त हिन्दी साहित्य के गले बंध गयी हो अथवा बांध दी गयी हो। युगीन गतिविधियों को देखते हुए जितनी स्वाभाविक कोई बात हो सकती थी। प्रगतिवादी का आविर्भाव उतना ही स्वाभाविक था यह काल पुरुष का वह निर्णय था जिससे सारे सन्दर्भ तत्कालीन युग जीवन में पूरी तरह नक्श थे।'

प्रगतिवाद : अर्थ और स्वरूप - प्रगतिवाद आधुनिक हिन्दी साहित्य की ऐसी विधा है जिसने आधुनिक हिन्दी काव्य जगत को प्रभावित किया ही है साथ ही कथा साहित्य भी इससे अछूता नहीं रहा। वास्तव में तो प्रगतिवाद एक विश्वव्यापी साहित्यिक आन्दोलन है जिसने समस्त भाषाओं और देशों को प्रभावित किया था। डॉ. कृष्णदेव झारी के अनुसार प्रगतिशीलता किसी वाद विशेष से नहीं बँधी थी जबकि प्रगतिवाद मार्क्सवाद से बँध गया। इसी से प्रगतिवाद की परिभाषा या व्याख्या आज यह रूढ़ हो गयी है कि राजनीति के क्षेत्र में जो मार्क्सवाद है, वहीं साहित्य के क्षेत्र में प्रगतिवाद है। साहित्य में प्रगतिवाद या प्रगतिशीलता, अर्थात् सामान्य जीवन के उत्थान की कामना वस्तुतः युग की ही पुकार थी। डॉ. हरिचरण शर्मा के अनुसार, "प्रगतिवाद में उस समाज की तस्वीर है जो पीड़ित और शोषित है। इसने वर्ग भेद की खाई को पाटने का काम तो किया ही, साथ ही मनुष्य को सामाजिक और राजनीतिक भूमिका भी प्रदान की। राजनीतिक क्षेत्र का साम्यवाद, सामाजिक क्षेत्र का समाजवाद और दर्शन का द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद ही जब साहित्य से अवतरित हुआ तो उसे सहज ही प्रगतिवाद की अभिधा प्राप्त हो गई। इस प्रकार प्रगतिवाद का प्रमुख कथ्य सामाजिक जीवन का यथार्थ परिप्रेक्ष्य है। इसका कारण यह है कि छायावादियों ने इस पक्ष को प्रायः छोड़ दिया था या कल्पना की मादक तरंगों को बहाने वाले कवि समाज की ओर हसरत भरी दृष्टि नहीं डाल सके थे।

इसी सामाजिक यथार्थ के प्रति क्रान्तिदर्शी दृष्टिकोण के कारण कई नये बिन्दु सामने आये तथा रूढ़ियों का विरोध हुआ। शोषित और पीड़ितों का गुणगान तथा शीर्षकों को घृणा की दृष्टि से देखा गया। यथार्थवादी दृष्टि ने प्रकृति, प्रेम, नारी, ईश्वर और धर्म को नये चश्मे से देखने को भी बाध्य किया '।

डॉ. मूलचन्द सेठिया का विचार है कि, "प्रगतिवाद के नाम से अभिहित की जाने वाली काव्यधारा का स्वरूप पूर्ववर्ती परम्परा से स्पष्टतः भिन्न है। पूर्ववर्ती काव्य में शोषित एवं पीड़ित मानवता के प्रति सहानुभूति की अभिव्यक्ति है। शासक एवं शोषक वर्ग के प्रति असन्तोष और आक्रोश 1. का विस्फोट है और वह काव्य को मानव जीवन संयुक्त रखने का प्रबल आग्रही हैं, परन्तु इन सब के पीछे केवल मानवता का तकाजा है, जबकि प्रगतिवादी कवि द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद के दृष्टिकोण से समाज के विकास क्रम का लेखा-जोखा करते हुए भावी परिवर्तन के द्वन्द्वात्मक निर्यात के आधार पर पूर्व निश्चित मानते हैं।' डॉ. शिवकुमार मिश्र के अनुसार, प्रगतिवादी युग का आविर्भाव न तो किसी अनहोनी का सूचक है और न किसी ऐसी आकस्मिकता का, जो ऐतिहासिक संदर्भों से कटी, युग की संवेदनाओं से शून्य, बालात हिन्दी साहित्य के गले बंध गई हो अथवा बांध दी गई हो। युगीन गतिविधियों को देखते हुए जितनी स्वाभाविक कोई बात हो सकती थी, प्रगतिवाद का आविर्भाव भी उतना ही स्वाभाविक था। वह काल पुरुष का वह निर्णय था जिसके सारे सन्दर्भ तत्कालीन युग- जीवन के नत थे।'

अतः स्पष्ट है कि प्रगतिवादी प्रगत्युन्मुखी चेतना का पक्षधर एवं प्रसारक काव्य प्रयत्न है। इसकी प्रगतिशीलता बहुआयामी है। सामाजिक स्वातन्त्र्य, रूढ़ियों से मुक्ति का आग्रह और जीवन के यथार्थ का सम प्रवाही चित्रांकन जिसमें यथार्थ की जीवन सरिता का कोमल पुरुष रूप भी सुरक्षित है तथा जो मानव जीवन की गतिविधियों और प्रगतियों को जनसाधारण की वर्णमाला के द्वारा प्रस्तुत करता है वही प्रगतिवाद है और उसका सर्जक प्रगतिवाद कवि हैं।

हिन्दी के प्रमुख प्रगतिवादी कवि - प्रगतिवाद का बीजारोपण छायावादी कवियों ने ही कर दिया था, वे सभी कल्पना लोक में विचरण करते-करते थक गये थे। पन्त और निराला दोनों ही ऐसे कवि हैं जिनके काव्य में प्रगतिशीलता मिलती है इसी प्रकार रामविलास शर्मा, शिवमंगल सिंह 'सुमन', 'अंचल', 'नागार्जुन', केदारनाथ अग्रवाल आदि ऐसे प्रगतिवादी कवि हैं जो अपने एक सीमित दायरे में ही विचरण करते रहे हैं। शील, रांगेय राघव, त्रिलोचन, शिवमंगल सिंह 'सुमन', रामविलास शर्मा आदि ऐसे प्रगतिवादी कवि है जिन्होंने यथार्थ भोगा और जिया है।

प्रगतिवाद का परिवेश या पृष्ठभूमि - प्रगतिवादी काव्यधारा का उद्भव उस समय की राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक एवं साहित्यिक परिस्थितियों में देखा जा सकता है जो निम्नांकित बिन्दुओं में प्रस्तुत है -

(1) राजनीतिक पृष्ठभूमि - अंग्रेजी शासन की स्थापना के साथ भारत में उद्योग का केन्द्रीयकरण प्रारम्भ होने से श्रमिक और पूँजीपति, शोषित और शोषक वर्ग की उत्पत्ति हुई। परिणामस्वरूप राष्ट्रीय आन्दोलन का एकमात्र लक्ष्य भारत को अंग्रेजों की राजनीतिक दासता से मुक्त कराना था। साथ ही शोषण, भेदभाव और अन्याय का अन्त करके शोषण विहीन प्रजातंत्र की प्रतिष्ठा करना था। जिससे देश का सजग कलाकार प्रभावित रहा देश की दयनीय दशा का चित्रण तथा क्रान्ति की भावना प्रगतिवादी कवियों की रचनाओं में आबाध गति से प्रवाहित हुई। .

(2) धार्मिक पृष्ठभूमि - मार्क्सवाद का प्रभाव भारतीय समाज और साहित्य पर पड़ रहा था। जिसके में साम्यवादी भावना थी। जिसका एकमात्र धर्म मानव में महत्त्व की स्थापना की। यही कारण है कि प्रगतिवादी युग के समाज में धार्मिक रूढ़ियों और बाह्य आडम्बरों के प्रति अनास्था की मूल भावना का उदय हुआ। यहाँ तक कि सामाज का साम्यवादी वर्ग ईश्वर के प्रति भी आस्था नहीं रखता था। इस प्रकार धार्मिक दृष्टि से इस युग की पृष्ठभूमि में इस नयी विचारधारा का उदय हुआ।

(3) सामाजिक पृष्ठभूमि  - प्रगतिवादी का अभ्युदय जिन परिस्थितियों में हुआ उस समय भारतीय सामाजिक व्यवस्था दो वर्गों में विभक्त थी। एक ओर भारतीय समाज में उभरता हुआ जन संकट था। तो दूसरी ओर रूस में मार्क्सवादी दर्शन के आधार पर स्थापित साम्यवाद। भारतीय बुद्धिजीवी ऐसे समाज की स्थापना करना चाहता था। जिससे जन-जीवन का प्राधान्य हो एवं नये सुख-सुविधा की प्रतिष्ठा हो। देश की विषय सामाजिक परिस्थिति में युवकों का हाथ असन्तोष और विद्रोह के कशमंसा उठा और देश की सामाजिक अवस्था प्रगतिवादी विश्वासों और स्वरों के लिए उपयुक्त भूमि बन रही थी।

(4) साहित्यिक पृष्ठभूमि - साहित्य के क्षेत्र में छायावाद में द्विवेदी युग की इतीवृत्तात्मकता के प्रति विद्रोह किया तो प्रगतिवादी ने छायावाद की सूक्ष्मता और समाज विमुखता के प्रति विद्रोह किया। अपने विशिष्ट अर्थ में प्रगतिवाद ने मार्क्सवाद का साहित्यिक रूपान्तर है।

युग की कविता स्वप्नों में नहीं पल सकती उसकी जड़ों को अपनी पोषण सामग्री धारण करने के लिए कठोर धरती का आश्रय लेना पड़ता है। परिणामस्वरूप प्रगतिवादी जीवन आदर्श से प्रेरित हुए।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- इतिहास क्या है? इतिहास की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  2. प्रश्न- हिन्दी साहित्य का आरम्भ आप कब से मानते हैं और क्यों?
  3. प्रश्न- इतिहास दर्शन और साहित्येतिहास का संक्षेप में विश्लेषण कीजिए।
  4. प्रश्न- साहित्य के इतिहास के महत्व की समीक्षा कीजिए।
  5. प्रश्न- साहित्य के इतिहास के महत्व पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  6. प्रश्न- साहित्य के इतिहास के सामान्य सिद्धान्त का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  7. प्रश्न- साहित्य के इतिहास दर्शन पर भारतीय एवं पाश्चात्य दृष्टिकोण का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  8. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा का विश्लेषण कीजिए।
  9. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा का संक्षेप में परिचय देते हुए आचार्य शुक्ल के इतिहास लेखन में योगदान की समीक्षा कीजिए।
  10. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन के आधार पर एक विस्तृत निबन्ध लिखिए।
  11. प्रश्न- इतिहास लेखन की समस्याओं के परिप्रेक्ष्य में हिन्दी साहित्य इतिहास लेखन की समस्या का वर्णन कीजिए।
  12. प्रश्न- हिन्दी साहित्य इतिहास लेखन की पद्धतियों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  13. प्रश्न- सर जार्ज ग्रियर्सन के साहित्य के इतिहास लेखन पर संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
  14. प्रश्न- नागरी प्रचारिणी सभा काशी द्वारा 16 खंडों में प्रकाशित हिन्दी साहित्य के वृहत इतिहास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  15. प्रश्न- हिन्दी भाषा और साहित्य के प्रारम्भिक तिथि की समस्या पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- साहित्यकारों के चयन एवं उनके जीवन वृत्त की समस्या का इतिहास लेखन पर पड़ने वाले प्रभाव का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  17. प्रश्न- हिन्दी साहित्येतिहास काल विभाजन एवं नामकरण की समस्या का वर्णन कीजिए।
  18. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास का काल विभाजन आप किस आधार पर करेंगे? आचार्य शुक्ल ने हिन्दी साहित्य के इतिहास का जो विभाजन किया है क्या आप उससे सहमत हैं? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।
  19. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास में काल सीमा सम्बन्धी मतभेदों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  20. प्रश्न- काल विभाजन की उपयोगिता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  21. प्रश्न- काल विभाजन की प्रचलित पद्धतियों को संक्षेप में लिखिए।
  22. प्रश्न- रासो काव्य परम्परा में पृथ्वीराज रासो का स्थान निर्धारित कीजिए।
  23. प्रश्न- रासो शब्द की व्युत्पत्ति बताते हुए रासो काव्य परम्परा की विवेचना कीजिए।
  24. प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए - (1) परमाल रासो (3) बीसलदेव रासो (2) खुमान रासो (4) पृथ्वीराज रासो
  25. प्रश्न- रासो ग्रन्थ की प्रामाणिकता पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  26. प्रश्न- विद्यापति भक्त कवि है या शृंगारी? पक्ष अथवा विपक्ष में तर्क दीजिए।
  27. प्रश्न- "विद्यापति हिन्दी परम्परा के कवि है, किसी अन्य भाषा के नहीं।' इस कथन की पुष्टि करते हुए उनकी काव्य भाषा का विश्लेषण कीजिए।
  28. प्रश्न- विद्यापति का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  29. प्रश्न- लोक गायक जगनिक पर प्रकाश डालिए।
  30. प्रश्न- अमीर खुसरो के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  31. प्रश्न- अमीर खुसरो की कविताओं में व्यक्त राष्ट्र-प्रेम की भावना लोक तत्व और काव्य सौष्ठव पर प्रकाश डालिए।
  32. प्रश्न- चंदबरदायी का जीवन परिचय लिखिए।
  33. प्रश्न- अमीर खुसरो का संक्षित परिचय देते हुए उनके काव्य की विशेषताओं एवं पहेलियों का उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
  34. प्रश्न- अमीर खुसरो सूफी संत थे। इस आधार पर उनके व्यक्तित्व के विषय में आप क्या जानते हैं?
  35. प्रश्न- अमीर खुसरो के काल में भाषा का क्या स्वरूप था?
  36. प्रश्न- विद्यापति की भक्ति भावना का विवेचन कीजिए।
  37. प्रश्न- हिन्दी साहित्य की भक्तिकालीन परिस्थितियों की विवेचना कीजिए।
  38. प्रश्न- भक्ति आन्दोलन के उदय के कारणों की समीक्षा कीजिए।
  39. प्रश्न- भक्तिकाल को हिन्दी साहित्य का स्वर्णयुग क्यों कहते हैं? सकारण उत्तर दीजिए।
  40. प्रश्न- सन्त काव्य परम्परा में कबीर के योगदान को स्पष्ट कीजिए।
  41. प्रश्न- मध्यकालीन हिन्दी सन्त काव्य परम्परा का उल्लेख करते हुए प्रमुख सन्तों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  42. प्रश्न- हिन्दी में सूफी प्रेमाख्यानक परम्परा का उल्लेख करते हुए उसमें मलिक मुहम्मद जायसी के पद्मावत का स्थान निरूपित कीजिए।
  43. प्रश्न- कबीर के रहस्यवाद की समीक्षात्मक आलोचना कीजिए।
  44. प्रश्न- महाकवि सूरदास के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की समीक्षा कीजिए।
  45. प्रश्न- भक्तिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ या विशेषताएँ बताइये।
  46. प्रश्न- भक्तिकाल में उच्चकोटि के काव्य रचना पर प्रकाश डालिए।
  47. प्रश्न- 'भक्तिकाल स्वर्णयुग है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
  48. प्रश्न- जायसी की रचनाओं का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  49. प्रश्न- सूफी काव्य का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  50. प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए -
  51. प्रश्न- तुलसीदास कृत रामचरितमानस पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  52. प्रश्न- गोस्वामी तुलसीदास के जीवन चरित्र एवं रचनाओं का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  53. प्रश्न- प्रमुख निर्गुण संत कवि और उनके अवदान विवेचना कीजिए।
  54. प्रश्न- कबीर सच्चे माने में समाज सुधारक थे। स्पष्ट कीजिए।
  55. प्रश्न- सगुण भक्ति धारा से आप क्या समझते हैं? उसकी दो प्रमुख शाखाओं की पारस्परिक समानताओं-असमानताओं की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
  56. प्रश्न- रामभक्ति शाखा तथा कृष्णभक्ति शाखा का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  57. प्रश्न- हिन्दी की निर्गुण और सगुण काव्यधाराओं की सामान्य विशेषताओं का परिचय देते हुए हिन्दी के भक्ति साहित्य के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  58. प्रश्न- निर्गुण भक्तिकाव्य परम्परा में ज्ञानाश्रयी शाखा के कवियों के काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए।
  59. प्रश्न- कबीर की भाषा 'पंचमेल खिचड़ी' है। सउदाहरण स्पष्ट कीजिए।
  60. प्रश्न- निर्गुण भक्ति शाखा एवं सगुण भक्ति काव्य का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  61. प्रश्न- रीतिकालीन ऐतिहासिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनैतिक पृष्ठभूमि की समीक्षा कीजिए।
  62. प्रश्न- रीतिकालीन कवियों के आचार्यत्व पर एक समीक्षात्मक निबन्ध लिखिए।
  63. प्रश्न- रीतिकालीन प्रमुख प्रवृत्तियों की विवेचना कीजिए तथा तत्कालीन परिस्थितियों से उनका सामंजस्य स्थापित कीजिए।
  64. प्रश्न- रीति से अभिप्राय स्पष्ट करते हुए रीतिकाल के नामकरण पर विचार कीजिए।
  65. प्रश्न- रीतिकालीन हिन्दी कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों या विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  66. प्रश्न- रीतिकालीन रीतिमुक्त काव्यधारा के प्रमुख कवियों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार दीजिए कि प्रत्येक कवि का वैशिष्ट्य उद्घाटित हो जाये।
  67. प्रश्न- आचार्य केशवदास का संक्षिप्त जीवन परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  68. प्रश्न- रीतिबद्ध काव्यधारा और रीतिमुक्त काव्यधारा में भेद स्पष्ट कीजिए।
  69. प्रश्न- रीतिकाल की सामान्य विशेषताएँ बताइये।
  70. प्रश्न- रीतिमुक्त कवियों की विशेषताएँ बताइये।
  71. प्रश्न- रीतिकाल के नामकरण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  72. प्रश्न- रीतिकालीन साहित्य के स्रोत को संक्षेप में बताइये।
  73. प्रश्न- रीतिकालीन साहित्यिक ग्रन्थों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  74. प्रश्न- रीतिकाल की सांस्कृतिक परिस्थितियों पर प्रकाश डालिए।
  75. प्रश्न- बिहारी के साहित्यिक व्यक्तित्व की संक्षेप मे विवेचना कीजिए।
  76. प्रश्न- रीतिकालीन आचार्य कुलपति मिश्र के साहित्यिक जीवन का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  77. प्रश्न- रीतिकालीन कवि बोधा के कवित्व पर प्रकाश डालिए।
  78. प्रश्न- रीतिकालीन कवि मतिराम के साहित्यिक जीवन पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- सन्त कवि रज्जब पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  80. प्रश्न- आधुनिककाल की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, सन् 1857 ई. की राजक्रान्ति और पुनर्जागरण की व्याख्या कीजिए।
  81. प्रश्न- हिन्दी नवजागरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  82. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के आधुनिककाल का प्रारम्भ कहाँ से माना जाये और क्यों?
  83. प्रश्न- आधुनिक काल के नामकरण पर प्रकाश डालिए।
  84. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों की सोदाहरण विवेचना कीजिए।
  85. प्रश्न- भारतेन्दु युगीन काव्य की भावगत एवं कलागत सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
  86. प्रश्न- भारतेन्दु युग की समय सीमा एवं प्रमुख साहित्यकारों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  87. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन काव्य की राजभक्ति पर प्रकाश डालिए।
  88. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन काव्य का संक्षेप में मूल्यांकन कीजिए।
  89. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन गद्यसाहित्य का संक्षेप में मूल्यांकान कीजिए।
  90. प्रश्न- भारतेन्दु युग की विशेषताएँ बताइये।
  91. प्रश्न- द्विवेदी युग का परिचय देते हुए इस युग के हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में योगदान की समीक्षा कीजिए।
  92. प्रश्न- द्विवेदी युगीन काव्य की विशेषताओं का सोदाहरण मूल्यांकन कीजिए।
  93. प्रश्न- द्विवेदी युगीन हिन्दी कविता की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
  94. प्रश्न- द्विवेदी युग की छः प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
  95. प्रश्न- द्विवेदीयुगीन भाषा व कलात्मकता पर प्रकाश डालिए।
  96. प्रश्न- छायावाद का अर्थ और स्वरूप परिभाषित कीजिए तथा बताइये कि इसका उद्भव किस परिवेश में हुआ?
  97. प्रश्न- छायावाद के प्रमुख कवि और उनके काव्यों पर प्रकाश डालिए।
  98. प्रश्न- छायावादी काव्य की मूलभूत विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
  99. प्रश्न- छायावादी रहस्यवादी काव्यधारा का संक्षिप्त उल्लेख करते हुए छायावाद के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
  100. प्रश्न- छायावादी युगीन काव्य में राष्ट्रीय काव्यधारा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  101. प्रश्न- 'कवि 'कुछ ऐसी तान सुनाओ, जिससे उथल-पुथल मच जायें। स्वच्छन्दतावाद या रोमांटिसिज्म किसे कहते हैं?
  102. प्रश्न- छायावाद के रहस्यानुभूति पर प्रकाश डालिए।
  103. प्रश्न- छायावादी काव्य में अभिव्यक्त नारी सौन्दर्य एवं प्रेम चित्रण पर टिप्पणी कीजिए।
  104. प्रश्न- छायावाद की काव्यगत विशेषताएँ बताइये।
  105. प्रश्न- छायावादी काव्यधारा का क्यों पतन हुआ?
  106. प्रश्न- प्रगतिवाद के अर्थ एवं स्वरूप को स्पष्ट करते हुए प्रगतिवाद के राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक तथा साहित्यिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  107. प्रश्न- प्रगतिवादी काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियों का वर्णन कीजिए।
  108. प्रश्न- प्रयोगवाद के नामकरण एवं स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए इसके उद्भव के कारणों का विश्लेषण कीजिए।
  109. प्रश्न- प्रयोगवाद की परिभाषा देते हुए उसकी साहित्यिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  110. प्रश्न- 'नयी कविता' की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  111. प्रश्न- समसामयिक कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों का समीक्षात्मक परिचय दीजिए।
  112. प्रश्न- प्रगतिवाद का परिचय दीजिए।
  113. प्रश्न- प्रगतिवाद की पाँच सामान्य विशेषताएँ लिखिए।
  114. प्रश्न- प्रयोगवाद का क्या तात्पर्य है? स्पष्ट कीजिए।
  115. प्रश्न- प्रयोगवाद और नई कविता क्या है?
  116. प्रश्न- 'नई कविता' से क्या तात्पर्य है?
  117. प्रश्न- प्रयोगवाद और नयी कविता के अन्तर को स्पष्ट कीजिए।
  118. प्रश्न- समकालीन हिन्दी कविता तथा उनके कवियों के नाम लिखिए।
  119. प्रश्न- समकालीन कविता का संक्षिप्त परिचय दीजिए।

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